Kabir Ke Dohe and Amritvani In hindi
1.. दोहा – कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह| देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह||
अर्थ – जब तक यह देह है तब तक तू कुछ न कुछ देता रह; जब देह धूल में मिल जायगी, तब कौन कहेगा कि ‘दो’|
Kabir Ke Dohe
2. दोहा – बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय| जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय||
अर्थ – जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला; जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है|
Kabir Ke Dohe
3. दोहा – पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय|ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।|
अर्थ – बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए; पर सभी विद्वान न हो सके| कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा|
Kabir Ke Dohe
4. दोहा – देह खेह होय जायगी,;कौन कहेगा देह| निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन यह||
अर्थ – मरने के पश्चात् तुमसे कौन देने को कहेगा ? अतः निश्चित पूर्वक परोपकार करो; यही जीवन का फल है|
Kabir Ke Dohe
5. दोहा – साधु ऐसा चाहिए; जैसा सूप सुभाय| सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय||
अर्थ – इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है; जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे|
Kabir Ke Dohe
6. दोहा – ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय| औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय|
अर्थ – मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो; जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो|
Kabir Ke Dohe
7. दोहा – तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय| कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय||
अर्थ – कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है; यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है!
Kabir Ke Dohe
8. दोहा – जिही जिवरी से जाग बँधा; तु जनी बँधे कबीर| जासी आटा लौन ज्यों, सों समान शरीर||
अर्थ – जिस भ्रम तथा मोह की रस्सी से जगत के जीव बंधे है| हे कल्याण इच्छुक ” तू उसमें मत बंध” | नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है, वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर – शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा हैं|
Kabir Ke Dohe
9. दोहा – धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय| माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय||
अर्थ – मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है; अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा|
Kabir Amritvani
10. दोहा – जीवत कोय समुझै नहीं; मुवा न कह संदेश| तन–मन से परिचय नहीं; ताको क्या उपदेश||
अर्थ – शरीर रहते हुए तो कोई यथार्थ ज्ञान की बात समझता नहीं; और मार जाने पर इन्हे कौन उपदेश करने जायगा| जिसे अपने तन मन की की ही सुधि–बूधी नहीं हैं, उसको क्या उपदेश किया ?
Kabir Amritvani
11. दोहा – बनिजारे के बैल ज्यों; भरमि फिर्यो चहुँदेश| खाँड़ लादी भुस खात है; बिन सतगुरु उपदेश||
अर्थ – सौदागरों के बैल जैसे पीठ पर शक्कर लाद कर भी भूसा खाते हुए चारों और फेरि करते है| इस प्रकार इस प्रकार यथार्थ सद्गुरु के उपदेश बिना ज्ञान कहते हुए भी विषय–प्रपंचो में उलझे हुए मनुष्य नष्ट होते है|
Kabir Amritvani
12. दोहा – माला फेरत जुग भया; फिरा न मन का फेर| कर का मनका डार दे; मन का मनका फेर||
अर्थ – कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है; पर उसके मन का भाव नहीं बदलता! उसके मन की हलचल शांत नहीं होती; कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो!
Kabir Amritvani
13. दोहा – जाति न पूछो साधु की; पूछ लीजिये ज्ञान| मोल करो तरवार का; पड़ा रहन दो म्यान||
अर्थ – सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए! तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का उसे ढकने वाले खोल का|
Kabir Amritvani
14. दोहा – बार-बार तोसों कहा,; सुन रे मनुवा नीच| बनजारे का बैल ज्यों, पैडा माही मीच||
अर्थ – हे नीच मनुष्य! सुन, मैं बारम्बार तेरे से कहता हूं; जैसे व्यापारी का बैल बीच मार्ग में ही मार जाता है; वैसे तू भी अचानक एक दिन मर जाएगा|
Kabir Amritvani
15. दोहा – जैसा भोजन खाइये; तैसा ही मन होय| जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय||
अर्थ – “आहारशुध्दी” जैसे खाय अन्न; वैसे बने मन्न लोक प्रचलित कहावत है! और मनुष्य जैसी संगत करके जैसे उपदेश पायेगा, वैसे ही स्वयं बात करेगा | अतएव आहाविहार एवं संगत ठीक रखो|
Kabir Amritvani
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